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yashodaa kaa na.ndalaalaa brij kaa ujaalaa hai

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ज़ु ज़ु ज़ू ज़ु ज़ू ज़ु ज़ु ज़ु ज़ु ज़ू
यशोदा का नंदलाला बृज का उजाला है
मेरे लाल से तो सारा जग झिलमिलाए
ज़ु ज़ु ज़ू ज़ु ज़ू ज़ु ज़ु ज़ु ज़ु ज़ू
रात ठंडी ठंडी हवा, गा के सुलाए
भोर गुलाबी पलकें, खोल के जगाए

दो अँखियों में तुझे बसाके
जाने कब से जागूँ
तू माँगे तो चाँद भी दे दूँ
तुझ से कुछ ना माँगूँ
खोल तू आँखें देख यहाँ हूँ
और नहीं कोई मैं तेरी माँ हूँ, ज़ु ज़ु ज़ू ...
तेरे लिये कैसे कैसे सपने सजाए, मेरे लाल से ...

जाने कब ये आती जाती
सांस कहाँ थम जाए
देख मुरझाता फूल टूट के
डाली से कब गिर जाए
तू जो मुझे माँ माँ ... माँ, रहके बुलाए
रूह को मेरी चैन आ जाए, ज़ु ज़ु ज़ू ...
सो जाए ऐसे फिर ना जागूँ जगाए, मेरे लाल से ...

Comments/Credits:

			 % Credits: Preetham Gopalaswamy (preetham@src.umd.edu)
		     
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