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dil me.n ik lahar sii uThii hai abhii

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चन्द कलियाँ निशात की चुन कर
मुद्दतों महव-ए-यास रहता हूँ
तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही
तुझसे मिल कर उदास रहता हूँ

दिल में इक लहर सी उठी है अभी
कोई ताज़ा हवा चली है अभी

शोर बरपा है ख़ाना-ए-दिल में
कोई दीवार सी गिरी है अभी

कुछ तो नाज़ुक मिज़ाज हैं हम भी
और ये चोट भी नई है अभी

सो गए लोग उस हवेली के
एक खिड़की मगर खुली है अभी

याद के बे-निशाँ जज़ीरों से
तेरी आवाज़ आ रही है अभी

शहर की बे-चराग़ गलियों में
ज़िंदगी तुझको ढूँढती है अभी

भरी दुनिया में दिल नहीं लगता
जाने किस चीज़ की कमीं है अभी

वक़्त अच्छा भी आयेगा 'नासिर'
ग़म न कर ज़िंदगी पड़ी है अभी

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