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zaraa ruk jaa ai jaldii kyaa abhii pyaar mat karanaa

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ज़रा रुक जा ऐ जळी क्या अभी प्यार मत करना
सबर का फल होता मीठा ये बात तुम मत भूलना
अचानक दिल से फूटा है मेरे प्यार का झरना
दिल तो दिल है करेगा ये जो भी इसको करना
झरना कहे ये मुझसे कहे के तुझसे दूर रहूं
दिल पे नहीं है काबू मेरा आखिर मैं क्या कहूं
ज़रा रुक जा ...

कैसा सबर तुझे क्या खबर मेरा दिल सुलग रहा
इसकी दवा हमारा मिलन अब तो ना जाए सहा
ज़रा रुक जा ...

मैं हूँ तेरा तू है मेरी करती है क्यूं नखरे
तू क्या जाने प्यार में होते भेद बड़े गहरे
ज़रा रुक जा ...

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