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zaKmo.n se kalejaa chuur huaa ... ye kyaa zi.ndagii hai

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ज़ख़मों से कलेजा चूर हुआ
हद हो गई ग़म में नालों की
क्या हूँही तबाही होती है
दुनिया में मोहब्बत-वालों की

ये क्या ज़िंदगी है, ये कैसा जहाँ है -२
जिधर देखिये ज़ुल्म की दास्तां है -२

कहीं है कफ़स में किसीका बसेरा
कहीं है निगाहों में ग़म का अंधेरा
कहीं दिल का लुटता हुआ कारवां है
जिधर देखिये ज़ुल्म की दास्तां है -२

यहाँ आदमी आदमी का है दुश्मन
यहाँ चाक इनसानियत का है दामन
मोहब्बत का उजड़ा हुआ आशियां है
जिधर देखिये ज़ुल्म की दास्तां है -२

ये बेरहम दुनिया समझ में न आए
यहाँ कर रहे हैं सितमग़र ख़ुदाई
न जाने तू ऐ दुनियावाले कहाँ है
जिधर देखिये ज़ुल्म की दास्तां है -२

ये क्या ज़िंदगी है, ये कैसा जहाँ है
जिधर देखिये ज़ुल्म की दास्तां है

Comments/Credits:

			 % Transliterator: Rajiv Shridhar (rajiv@hendrix.coe.neu.edu)
% Date: Sun Sep 10, 1995
% Editor: Rajiv Shridhar (rajiv@hendrix.coe.neu.edu)
		     
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