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zaKm dil ke agar siye hote - - Ghulam Ali

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ज़ख़्म दिल के अगर सिये होते
अहल-ए-दिल किस तरह जिये होते

वो मिले भी तो इक झिझक सी रही
काश थोड़ी सी हम पिये होते

आरज़ू मुतमइन तो हो जाती
और भी कुछ सितम किये होते

लज़्ज़त-ए-ग़म तो बख़्श दी उसने
हौसले भी 'अदम' दिये होते

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