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ye zi.ndagii kuchh bhii sahii par ye mere kis kaam kii

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ये ज़िंदगी कुछ भी सही पर ये मेरे किस काम की
हो जिसके लिये जीते हैं लोग बस है कमी उस नाम की

जिसको नहीं है अरमान कोई कैसी जवानी है ये
जिसका नहीं है उनवान कोई कैसी कहानी है ये
ना है ख़बर आग़ाज़ की ना है ख़बर अंजाम की

प्यासा रहा मैं मेरी गली में सावन बरसता रहा
मेले में जैसे कोई अकेला ऐसे तरसता रहा
पूछो न ये कैसे भला मैंने सुबह से शाम की

दिल बहलाने को लिखते हैं दिल के क़िस्से फ़सानों में लोग
रखते हैं हीरे मोती सजाके अपनी दूकानों में लोग
बाज़ार में क़ीमत है क्या टूटे हुए एक जाम की

Comments/Credits:

			 % Transliterator: Arunabha S Roy
% Date: 14 Oct 2003
% Series: THGHT
% generated using giitaayan
		     
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