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ye zi.ndagii, aaj jo tumhaare badan kii

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ये ज़िंदग़ी !
आज जो, तुम्हारे बदन की छोटी-बड़ी नसों में
मचल रही है, तुम्हारे पैरों से, चल रही है

ये ज़िंदग़ी !
तुम्हारी आवाज़ में ग़ले से, निकल रही है
तुम्हारे लफ़्ज़ों में, ढल रही है

ये ज़िंदग़ी !
जाने कितनी सदियों से यूँही शक़लें
बदल रही है

बदलती शक़लें
बदलते जिस्मों में
चलता-फिरता ये इक शरारा
जो इस घड़ी नाम है तुम्हारा
इसी से सारी शहल-पहल है
इसी से रोशन है हर नज़ारा

सितारे तोड़ो, या घर बसाओ
क़लम उठाओ, या सर झुकाओ

तुम्हारी आँखों की रोश्नी तक
है खेल सारा

ये खेल होगा नहीं दुबारा!
ये खेल होगा नहीं दुबारा!

Comments/Credits:

			 % Transliterator: Rajiv Shridhar (rajiv@hendrix.coe.neu.edu)
% Date: Sun Sep 10 1995
% Editor: Rajiv Shridhar (rajiv@hendrix.coe.neu.edu)
% Comments: from the `Insight' album (1993)
		     
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