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ye raat bhiigii\-bhiigii ye mast fizaa_e.N

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म : ये रात भीगी-भीगी ये मस्त फ़िज़ाएँ
उठा धीरे-धीरे वो चाँद प्यारा-प्यारा
ल : क्यों आग सी लगा के गुमसुम है चाँदनी
सोने भी नहीं देता मौसम का ये इशारा

म : इठलाती हवा नीलम सा गगन
कलियों पे ये बेहोशी की नमी
ऐसे में भी क्यों बेचैन है दिल
जीवन में न जाने क्या है कमी
ल : क्यों आग सी लगा के ...
म : ये रात भीगी-भीगी ...

ल : जो दिन के उजाले में न मिला
दिल ढूँढे ऐसे सपने को
इस रात की जगमग में डूबी
मैं ढूँढ रही हूँ अपने को
म : ये रात भीगी-भीगी ...
ल : क्यों आग सी लगा के ...

म : ऐसे में कहीं क्या कोई नहीं
भूले से जो हमको याद करे
ल : इक हल्की सी मुस्कान से जो
सपनों का जहाँ आबाद करे
म : ये रात भीगी-भीगी ...

Comments/Credits:

			 % Credits: Ashok Dhareshwar
		     
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