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ye raat bhii jaa rahii hai ke Gam kii ghaTaa chhaa rahii hai

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ये रात भी जा रही है
के ग़म की घटा छा रही है
मेरे हमदम तू नहीं आया
ये रात भी जा ...

नहीं जिस तरफ़ कोई मंज़िल उसी राह पे चल रही हूँ
तेरी याद में ओ सितमगर शमा की तरह जल रही हूँ -२
शमा बुझी जा रही है
मेरे हमदम तू ...

कोई दुश्मनी आसमाँ की मुहोब्बत की हर दास्ताँ की
कहीं ये न हो कि तू आए चले जाएँ हम इस जहाँ से -२
होंठों पे जाँ आ रही है
मेरे हमदम तू ...

ये रात भी ( जा रही है ) -३

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