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ye faasale terii galiyo.n ke ... hazaar baar ruke ham

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ये फ़ासले तेरी गलियों के हमसे तय न हुए
हज़ार बार रुके हम हज़ार बार चले

न जाने कौन सी मट्टी वतन की मट्टी थी
नज़र में धूल जिगर में लिये ग़ुबार चले

ये कैसी सरहदें उलझी हुई हैं पैरों में
हम अपने घर की तरफ़ उठ के बार बार चले

Comments/Credits:

			 % Transliterator: Vinay P Jain
% Date: 1 Jun 2003
% Series: GEETanjali
% generated using giitaayan
		     
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