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yaar ko ragabat\-e\-aGyaar na hone paaye - - Ghulam Ali

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यार को रगबत-ए-अग़्यार न होने पाये
गुल-ए-तर को हवस-ए-ख़ार न होने पाये

बाग़ की सैर को जाते तो हो पर याद रहे
सब्ज़ा बेगाना है दो-चार न होने पाये

जमा कर लीजिये ग़मज़ों को मगर ख़ूबी-ए-बज़्म
बस वहीं तक है कि बाज़ार न होने पाये

आप जाते तो हैं इस बज़्म में लेकिन 'शिब्ली'
हाल-ए-दिल देखिये इज़हार न होने पाये

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