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yaa habiibii ... muhabbat Kudaa hai

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र: या हबीबी -३
मैं बैठा हूँ राहों में आँखें बिछाये
फ़रिश्ते मसर्रत का पैग़ाम लागे
मोहब्बत चली है मोहब्बत से मिलने
कहो मौत से ज़िंदगी बन के आये
तमन्ना थी जिसकी वो दिन आ गया है
मेरे साज़-ए-दिल की यही अब सदा है
मुहब्बत ख़ुदा है -२

को: मुहब्बत ख़ुदा है -२

नौशाद: कहता है कोई दिल गया दिलबर चला गया
साहिल पुकारता है समंदर चला गया
लेकिन जो बात सच है वो कहता नहीं कोई
दुनिया से मौसिक़ी का पयम्बर चला गया

र: कहूँ क्या मोहब्बत में क्या मैंने पाया
उम्मीदों से भी कुछ सिवा मैंने पाया
ख़ुदी की हदें मिल गईं बेख़ुदी से
तेरी आरज़ू में ख़ुदा मैंने पाया
ख़ुदा मैंने पाया
जिधर देखता हूँ तेरा सामना है
मेरे साज़-ए-दिल की यही अब सदा है
र, को: मुहब्बत ख़ुदा है -२
को: मुहब्बत ख़ुदा है -२

Comments/Credits:

			 % The ash_aars in the middle seems to be some recitation by
% Naushad to pay homage to Rafi.
		     
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