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wohii mizaaj wohii chaal hai zamaane kii

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एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्ज़ाम नहीं
दुनिया वाले दिल वालों को और बहुत कुछ कहते हैं

वोही मिज़ाज वोही चाल है ज़माने की
हमें भी हो गई आदत फ़रेब खाने की

मैं सारे शहर में तन्हा नहीं हुआ रुस्वा
सज़ा मिली है तुम्हें भी तो दिल लगाने की

शराब मिलती है लेकिन हमारी प्यास से कम
अजीब रस्म है साक़ी यहाँ पिलाने की

नज़र बचा के तुम्हें देखता हूँ महफ़िल में
नज़र लगे न कहीं तुमको इस दिवाने की

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