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udaas shaam kisii Kaab me.n Dhalii to hai

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उदास शाम किसी ख़ाब में ढली तो है
यही बहुत है के ताज़ा हवा चली तो है

जो अपनी शाख़ से बाहर अभी नहीं आई
नई बहार की ज़ामिन वही कली तो है

धुवाँ तो झूठ नहीं बोलता कभी यारो
हमारे शहर में बस्ती कोई जली तो है

किसी के इश्क़ में हम जान से गये लेकिन
हमारे नाम से रस्म-ए-वफ़ा चली तो है

हज़ार बन्द हों दैर-ओ-हरम के दरवाज़े
मेरे लिये मेरे महबूब की गली तो है

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