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tumhaarii a.njuman se uTh ke diivaane kahaa.N jaate

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तुम्हारी अंजुमन से उठ के दीवाने कहाँ जाते
जो वाबस्ता हुए तुम से वो अफ़्साने कहाँ जाते

तुम्हारी बेरुख़ी ने लाज रख ली बादाख़ाने की
तुम आँखों से पिला देते तो मैख़ाने कहाँ जाते?

चलो अच्छा हुआ, काम आ गई दीवानगी अपनी
वगरना हम ज़माने भर को समझाने कहाँ जाते?

निकल कर दैर-ओ-का'बा से, अगर मिलता न मैख़ाना
तो ठुकराए हुए इनसाँ, ख़ुदा जाने कहाँ जाते!

'क़तील', अपना मुक़द्दर ग़म से बेगाना अगर होता
तो फिर अपने-पराए हम से पहचाने कहाँ जाते?

Comments/Credits:

			 % Transliterator: U.V. Ravindra
% Series: GEETanjali series, Feb 19, 2003
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