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taras naa jaa_o kahii.n ma.nzil\-e\-wafaa ke liye

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तरस ना जाओ कहीं मंज़िल-ए-वफ़ा के लिये
किसी के प्यार न कर बैठना ख़ुदा के लिये

ख़ुदा से माँग के तुझको न जब तुझे पाया
उठे न हाथ मेरे फिर कभी दुआ के लिये

किसी का तोहफ़ा कभी रद नहीं किया जाता
वो दुख जो उसने दिये मैंने मुस्कुरा के लिये

'क़तील' जब भी लगेगी कहीं अदालत-ए-इश्क़
बस एक ही तुम ही चुने जाओगे सज़ा के लिये

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