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sochate aur jaagate saa.Nso.n kaa ik dariyaa huu.N mai.n - - Ghulam Ali

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सोचते और जागते साँसों का इक दरिया हूँ मैं
अपने गुमगश्ता किनारों के लिये बहता हूँ मैं

जल गया सारा बदन इन मौसमों की आग में
एक मौसम रूह का है जिसमें अब ज़िंदा हूँ मैं

मेरे होंठों का तबस्सुम दे गया धोखा तुझे
तूने मुझको बाग़ जाना देख ले सहरा हूँ मैं

देखिये मेरी पजीराई को अब आता है कौन
लम्हा भर तो वक़्त की दहलीज़ पर आया हूँ मैं

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