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shauq har ra.ng rakiib\-e\-sar\-o\-saamaa.N nikalaa - - Ghulam Ali

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शौक़ हर रंग रकीब-ए-सर-ओ-सामाँ निकला
क़ैस तस्वीर के पर्दे में भी उरियाँ निकला

ज़ख़्म ने दाद न दी तंगी-ए-दिल की या रब
तीर भी सीना-ए-बिस्मिल से पर-अफ़्शाँ निकला

बू-ए-गुल नाला-ए-दिल दूद-द-चराग़-ए-महफ़िल
जो तेरी बज़्म से निकला सो परीशाँ निकला

दिल-ए-हसरतज़दा था माइल-ए-लज़ात-ए-दर्द
काम यारों का ब-क़द्र-ए-लब-ओ-दन्दा निकला

है नौ-आमोज़-ए-फ़न हिम्मत-ए-दुश्वार पसन्द
सख़्त मुश्क़िल है कि यह काम भी आसाँ निकला

दिल में फिर गिरिये ने इक शोर उठाया 'ग़ालिब'
आह जो क़तरा न निकला था सो तूफ़ाँ निकला

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