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shamaa bujhane ko chalii

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शमा बुझने को चली -२
है यही दर्द कि जल जाए पतंगा न कहीं
शमा बुझने को चली ...

उसने चाहा कि मेरा चाहने वाला तो रहे
मैं रहूँ या न रहूँ घर का उजाला तो रहे
अपने प्रीतम के लिए छोड़ दी प्रीतम की गली
शमा बुझने को चली ...

भूलकर सबको बस इक अपनी वफ़ा साथ लिए
अपने ही अश्क़ों में भीगी हुई इक रात लिए
ग़म के तूफ़ां में घिरी ठोकरें खाती निकली
शमा बुझने को चली ...

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