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shabaab\-e\-raftaa kii ab ko_ii yaadagaar nahii.n

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शबाब-ए-रफ़्ता की अब कोई यादगार नहीं
बहार में भी वो रंगीनी-ए-बहार नहीं

कभी हयात की ज़ामिन कभी वसीला-ए-मर्ग
निगाह-ए-दोस्त तेरा कोई एतबार नहीं

बहार अस्ल में होती है दिल की शादाबी
नज़र के सामने जो कुछ है वो बहार नहीं

तेरे जमाल का जब तक न इज़्नु मिल जाये
किसी चराग़ को जलने का इख़्तियार नहीं

हयात में कोई तूफ़ान आने वाला है
बहुत दिनों से कोई मौज बेक़रार नहीं

वो अब भी मुझसे हैं नाराज़ क्या करूँ 'राना'
सलाम करने का उनको गुनाहगार नहीं

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