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shaam ke saa.Nwale chehare ko nikharaa jaaye

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इसका रोना नहीं क्यूँ तुमने किया दिल बरबाद
इसका ग़म है कि बहुत देर से बरबाद किया

शाम के साँवले चेहरे को निखरा जाये
क्यूँ न साग़र में कोई चांद उभारा जाये

रास आया नहीं तस्कीन का साहिल कोई
फिर मुझे प्यास के दरिया में उतारा जाये

मेहरबाँ तेरी नज़र तेरी अदायें क़ातिल
तुझको किस नाम से ऐ दोस्त पुकारा जाये

मुझको डर है तेरे वादे पे भरोसा कर के
मुफ़्त में ये दिल-ए-ख़ुश-फ़हम न मारा जाये

जिसके दम से मेरे दिन रात दरख़्शाँ थे 'क़तील'
कैसे अब उसके बिना वक़्त गुज़ारा जाये

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