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sadiyo.n kaa hai silasilaa ... miit mere man ke

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सदियों का है सिलसिला पहचान ये पुरानी है
दुनिया के गुलशन में आ के बहार बन के
मीत मेरे मन के

तड़पाया मिलने से पहले हमें मिल के भी तरसाया तुमने सनम
पांव में ज़ंजीर थी शर्म की चाह के भी मगर बढ़ सके न कदम
अब न रही वो दूरी खत्म हुई मजबूरी मिल ही गये आज हम
दुनिया में गीत मेरे मन के

साये में जिस के मिले तुमसे हम ऐसी ही बरसात की शाम थी
मोती की जो बूंद तन पे पड़ी लाई खुशी का पैगाम थी
मस्ताने मौसम की प्यार भरी वो चिट्ठी दीवाने के नाम थी
दुनिया के गुलशन में ...

शाखों पे जैसे नये गुल खिले हम भी नये रूप में यूं मिले
खुश्बू न बदली कभी प्यार की बनते रहे प्यार के सिलसिले
उल्फ़त की राहों में मंज़िल की चाहों में बढ़ते रहे क़ाफ़िले
दुनिया के गुलशन में ...

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