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sab kahaaa.N kuchh laalaa-o-gul me.n numaayaa ho gayii.n - - Jagjit Singh

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सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमाया हो गयीं
ख़ाक़ में क्या सूरतें होंगी कि पिन्हा हो गयीं

रंज से ख़ूग़र हुआ इनसाँ तो मिट जाता है रंज
मुशक़िलें मुझ पर पड़ीं इतनी की आसाँ हो गयीं

यूँ ही गर रोता रहा ग़ालिब तो ऐ एहल-ए-जहाँ
देखना इन बस्तियों को तुम कि वीराँ हो गयीं

Comments/Credits:

			 % Transliterator: K Vijay Kumar
		     
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