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saathii na koii ma.nzil

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साथी न कोई मंज़िल
दिया है न कोई महफ़िल
चला मुझे लेके ऐ दिल, अकेला कहाँ ...

हमदम मिले कोई कहीं
ऐसे नसीब ही नहीं
बेदर्द है ज़मीं दूर आसमाँ ...

गलियां हैं अपने देश की
फिर भी हैं जैसे अजनबी
किसको कहे कोई अपना यहाँ ...

पत्थर के इनसां मिले
पत्थर के देवता मिले
शीशे का दिल लिये, जाऊँ कहाँ ...

Comments/Credits:

			 % Credits: C. S. Sudarshana Bhat (cesaa129@utacnvx.uta.edu)
%          Venkatasubramanian K Gopalakrishnan (gopala@cs.wisc.edu)
%          Preetham Gopalaswamy (preetham@src.umd.edu)
		     
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