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saaGar nahii.n hai to kyaa hai

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साग़र नहीं है तो क्या है तेरी आँख का नशा तो है
बादल नहीं है तो क्या है तेरी ज़ुल्फ़ की घटा तो है
साग़र नहीं है ...

मेरी तमन्ना की महफ़िल से तुम यूँ उठ के जाने लगे हो
ऐसी भी क्या बेरुख़ी रूठ कर हमसे आँखें चुराने लगे हो
मौसम नहीं है तो क्या है मौक़ा ये प्यार का तो है
साग़र नहीं है ...

तेरी घनी ज़ुल्फ़ के साए में चार पल साथ तेरे जिएँगे
साग़र से रोज़ पीते हैं आज तेरी नज़र से पिएँगे
साक़ी नहीं है तो क्या है इक शोख़ दिलरुबा तो है
साग़र नहीं है ...

शायद यही है क़यामत की रात मान लेने को जी चाहता है
तेरी क़सम आज दिल ही नहीं जान देने को जी चाहता है -२
क़ातिल नहीं है तो क्या है क़ाफ़िर तेरी अदा तो है
साग़र नहीं है ...

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