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rasm\-e\-ulfat ko nibhaae.n to nibhaae.n kaise

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रस्म-ए-उल्फ़त को निभाएं तो निभाएं कैसे
हर तरफ़ आग है दामन को बचाएं कैसे
रस्म-ए-उल्फ़त को निभाएं...

दिल की राहों में उठते हैं जो दुनिया वाले -२
कोई कह दे के वोह दीवार गिराएं कैसे -२
रस्म-ए-उल्फ़त को निभाएं...

दर्द में डूबे हुए नग़मे हज़ारों हैं मगर -२
साज़-ए-दिल टूट गया हो तो सुनाए कैसे -२
रस्म-ए-उल्फ़त को निभाएं...

बोझ होता जो ग़मों का तो उठा भी लेते -२
ज़िंदगी बोझ बनी हो तो उठाएं कैसे -२
रस्म-ए-उल्फ़त को निभाएं...

Comments/Credits:

			 % Transliterator: Rajiv Shridhar 
% Date: 10/26/1996
% Credits: Ashok Dhareshwar 
%          Vandana Venkatesan 
		     
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