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rahamat pe terii mere gunaaho.n ko naaz hai - - Saigal

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रहमत पे तेरी मेरे गुनाहों को नाज़ है
बंदा हूँ जानता हूँ तू बंदानवाज़ है

पल्टी जिधर अदा से लुभातान-ए-ख़ूँ के हूँ
उफ़ यार क़हर की निगाह-ए-नीमबाज़ है

कह दो ये संगदिल से के तेरा संग-ए-आस्ताँ
ये देख ले के किसकी की जबीं में नियाज़ है

मुँह पर लगी है मोहर-ए-ख़मोशी मैं क्या कहूँ
जो मौत ने कहा है वो अच्छी तराज़ है

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