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raat aur din diyaa jale

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रात और दिन दिया जले
मेरे मन में फिर भी अंधियारा है
जाने कहाँ है वो साथी
तू जो मिले जीवन उजियारा है
रात और दिन...

पग पग मन मेरा ठोकर खाए
चाँद सूरज भी राह न दिखाए
ऐसा उजाला कोई मन में समाए
जिसके पिया का दर्शन मिल जाए
रात और दिन...

गहरा ये भेद कोई मुझको बताए
किसने किया है मुझपर अन्याय
जिसका ही दीप वो बुझ नहीं पाए
ज्योति दिये की दूजे घर को सजाए
रात और दिन...

खुद नहीं जानूँ ढूँढे किसको नज़र
कौन दिशा है मन की डगर
कितना अजब है ये दिल का सफ़र
जियरा में आए जैसे कोई लहर
रात और दिन...

Comments/Credits:

			 % Credits: rec.music.indian.misc 
%          Sriram Devanathan (sriram@IASTATE.EDU)
% Editor: Anurag Shankar (anurag@astro.indiana.edu)
		     
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