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raah banii Kud ma.nzil

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राह बनी ख़ुद मंज़िल पीछे रह गए मुश्किल
साथ जो आए तुम
राह बनी ख़ुद मंज़िल ...

देखो फूल बन के सारी धरती खिल परी
गुज़रे आरज़ू के रास्तें थे जिस घड़ी
जिस मे चुराए तुम
राह बनी ख़ुद मंज़िल ...

झरना गा रही है मेरी दिल की दास्ताँ
मेरी प्यास लेकर छा रही हैं मस्तीयाँ
जिन मे नहाए तुम
राह बनी ख़ुद मंज़िल ...

पंछी ऊड़ गए सब गा के नग़मा प्यार का
लेकिन दिल ने ऐसा जाल फेका प्यार का
उड़ने न पाए तुम
राह बनी ख़ुद मंज़िल ...

Comments/Credits:

			 % Transliterator: Prithviraj Dasgupta
% Date: 10/22/2001
		     
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