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qismat ke likhe ko miTaa na sake

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र : ( क़िस्मत के लिखे को मिटा न सके
हम उनको अपना बना न सके ) -२
वो आ न सके हम जा न सके
और ज़ख़्म-ए-जिगर भी दिखा न सके
जो राज छुपा है सीने में
उसको भी हाय सुना न सके

क़िस्मत के लिखे को मिटा न सके
हम उनको अपना बना न सके

सु : ( हम क़ैद में थे मजबूर हुये
नज़दीक भी रह कर दूर हुये ) -२
दिल के शीशे चूर हुये
ये बात किसी को बता न सके

र : ( जब दर्द जिगर में होता है
सु : ए
दिल चुपके-चुपके रोता है ) -२
र : आँसू तो बहे पानी बन कर
सु : पर दिल की आग बुझा न सके

र : ( जो वार हुये भरपूर हुये
सु : जो दाग़ पड़े नासूर हुये ) -२
हम भूलने पर मजबूर हुये -२
र : हम याद तुम्हारी भुला न सके

क़िस्मत के लिखे को मिटा न सके
हम उनको अपना बना न सके

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