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pyaar jab naa diyaa zi.ndagii ne kabhii

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प्यार जब ना दिया ज़िंदगी ने कभी
फिर सितमगर कौन हुआ आदमी या ज़िंदगी

जुर्म की है सज़ा, ये तो जानें सभी
कोई मुजरिम क्यूँ बना ये नहीं मानें कभी
साथ जब ना दिया ज़िंदगी ने कभी
फिर सितमगर कौन हुआ आदमी या ज़िंदगी

दाग़ लगता रहे, फिर भी जीना पड़े
ज़िल्लतों रुसवाइयों का ज़हर भी पीना पड़े
रहम जब ना किया ज़िंदगी ने कभी
फिर सितमगर कौन हुआ आदमी या ज़िंदगी

वो तो कहता रहा, ज़िंदगी के लिये
एक मुहबात के सिवा कुछ न मुझको चाहिये
प्यार जब ना दिया ज़िंदगी ने कभी
फिर सितमगर कौन हुआ आदमी या ज़िंदगी

Comments/Credits:

			 % Contributor: Vinay P Jain
% Transliterator: Vinay P Jain
% Date: 8 Aug 2003
% Series: Tere Hamsafar Geet Hain Tere (THGHT)
% generated using giitaayan
		     
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