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phir kisii rahaguzar par shaayad

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फिर किसी रहगुज़र पर शायद
हम कभी मिल सके मग़र शायद

जिनके जुम मुम्तज़िर रहे, उनको
मिल गए और हमसफ़र शायद

अजनबीयत की धुँध छँट जाए
चमक उठे तेरी नज़र शायद

जान पहचान से भी क्या होगा
फिर भी और दोस्त गौर कर शायद

जो भी बिछड़े हैं वोह कब मिले हैं 'फ़रज़'
फिर भी तू इंतेज़ार कर शायद

Comments/Credits:

			 % Transliterator: Rajiv Shridhar 
% Date: 10/26/1996
		     
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