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o mere rabbaa dil kyuu.n banaayaa

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ओ मेरे रब्बा दिल क्यूं बनाया
तन्हाई में तड़पना क्यूं सिखाया
कैसी है तेरी ख़ुदाई
कोई सुने ना दुहाई
हो गई क्या खता लुट गए
ओ मेरे रब्बा ...

कौन है दिल के पास जो धड़कनें सुन रहा
दूर से मेरी मांग में चाँदनी बुन रहा
बीते हुए लम्हें याद न कर
ऐ इश्क़ हमें बरबाद न कर
अश्क़ों के समंदर सूख गए
हो गई क्या खता लुट गए
ओ मेरे रब्बा ...

जिस्म तो बेजान है तेरे बिन तेरे बिन
रोशनी से हैं जुदा मेरे दिन मेरे दिन
दिल वो नगर है जो बसता नहीं उजड़ के
पछताएगा या रब तू ये बस्ती उजाड़ के
कभी रंजिश कभी शिकवे
कभी मन्नत कभी नाले
किया ना इश्क़ तू कैसे भला इस दर्द को जानें
चोट जिगर ने खाई
होंठों तक आह न आई
चाहतों के दिये बुझ गए
हो गई क्या खता लुट गए
ओ मेरे रब्बा ...

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