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nagarii nagarii phiraa musaafir ghar kaa rastaa bhuul gayaa

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नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया
क्या है तेरा क्या है मेरा अपना पराया भूल गया

क्या भुला कैसे भूला क्यूँ पूछते हो बस यूँ समझो
कारन दोष नहीं है कोई भूला भाला भूल गया

जिसको देखो उसके दिल में शिक़्वा है तो इतना है
हमें तो सब कुछ याद रहा पर हमको ज़माना भूल गया

कोई कहे ये किसने कहा था कह दो जो कुछ जी में है
मेरा जी कह कर पछताया और फिर कहना भूल गया

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