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nafarat se jinhe.n tum ... zamaane kii aa.Nkho.n ne

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नफ़रत से जिन्हें तुम देखते हो
तुम मारते हो जिन्हें ठोकर
क्या उन पे गुज़रती है देखो
एक बार कभी घायल हो कर

ज़माने की आँखों ने देखा है यारों
सदा अपनी दुनिया में ऐसा नज़ारा
कभी उनको फूलों से पूजा है सबने
कभी जिनको लोगों ने पत्थर से मारा
ज़माने की आँखों ...

पिसे न जहाँ तक पत्थर पे मेंहदी
किसी भी तरह रंग लाती नहीं है
हज़ारों जगह ठोकरें खा न ले जब तक
कोई ज़िन्दगी मुस्कराती नहीं है
बिना खुद मरे किसको जन्नत मिली है
बिना दुख सहे किसने जीवन सँवारा
ज़माने की आँखों ...

भँवर से जो घबरा के पीछे हटे हैं
डुबो दी है मौजों ने उनकी ही नैया
जो तूफ़ाँ से टकरा के आगे बढ़े हैं
बिना कोई माँझी बिना ही खिवईया
कभी न कभी तो कहीं न कहीं पर
हमेशा ही उनको मिला है किनारा
ज़माने की आँखों ...

यहाँ आदमी को सबक दोस्ती का
सिखाते हुए जो लहू में नहाया
मसीहा बना और गाँधी बना वो
हज़ारों दिलों में यहाँ घर बनाया
उन्हीं की बनी हैं यहाँ यादग़ारें -२
उन्हीं का ज़माने में चमका सितारा
ज़माने की आँखों ...

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