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naazo.n ke pale kaa.NTo.n pe chale

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नाज़ों के पले
(नाज़ों के पले काँटों पे चले
ऐसा भी जहाँ में होता है
तक़दीर के ज़ालिम हातों से
दिल खून(?) के आँसू रोता है)-२
नाज़ों के पलेथ्रेए दोत्स

जिस दिन में चराग(?) रहता था
हाथ उदती है उन हैवानों में
मकमल पे न रख ते थे जो कदम
फिरते हैं वो रेकिस्तानों में
नाज़ों के पलेथ्रेए दोत्स

चलने का सहारा कोई नहीं
रुकने क ठिकाना कोई नहीं
इस हाल में काम आने वला
अपना बेगाना कोई नहीं
नाज़ों के पलेथ्रेए दोत्स

दुनिया में किसी को भी अपनी
क़िस्मत क लिखा मालूम नहीं
सामान हैं लाखों बरसों के
पर कल क पता मालूम नहीं
नाज़ों के पलेथ्रेए दोत्स

Comments/Credits:

			 % Date:Dec 18, 2000
% Comments:SDB series
		     
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