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milii Kaak me.n muhabbat, jalaa dil kaa aashiyaanaa

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मिली ख़ाक में मुहब्बत, जला दिल का आशियाना
जो थी आज तक हक़ीक़त, वही बन गई फ़साना

ये बहार कैसी आई, जो फ़िज़ां भी साथ लाई
मैं कहाँ रहूँ चमन में, मेरा लुट गया ठिकाना

मुझे रास्ता दिखाकर, मेरे कारवां को लूटा
इधर आ गले लगा लूँ, तुझे गरदिश-ए-ज़माना

Comments/Credits:

			 % Credits: C. S. Sudarshana Bhat (cesaa129@utacnvx.uta.edu)
%          Venkatasubramanian K Gopalakrishnan (gopala@cs.wisc.edu)
%          Preetham Gopalaswamy (preetham@src.umd.edu)
		     
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