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mere haal par bebasii ro rahii hai

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मेरे हाल पर बेबसी रो रही है
ज़हे ज़िन्दगी, ज़िन्दगी रो रही है

अजब हाल में है मेरी ज़िन्दगानी
कि ग़म हँस रहे हैं ख़ुशी रो रही है

मेरी आरज़ू भी कोई आरज़ू है
अभी हँस रही थी अभी रो रही है

कोई मिट चुका है कोई मिट रहा है
मगर रोनेवाली अभी रो रही है

नहीं कोई दुनिया में साथी किसी का
चमन हँस रहा है कली रो रही है
मेरे हाल पर ...

Comments/Credits:

			 % Comments: Part of song was written by Qamar jalalabadi,
%      and the rest by Behzad Lukhnavi.
		     
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