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maut kitanii bhii sa.ngadil ho magar

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मौत कितनी भी संगदिल हो मगर
ज़िन्दगी से तो मेहरबाँ होगी

नित नए रंज दिल को देती है ज़िन्दगी हर ख़ुशी की दुश्मन है
मौत सबसे निबाह करती है ज़िन्दगी ज़िन्दगी की दुश्मन है
कुछ न कुछ तो सकून पाएगा
मौत के बस में जिसकी जाँ होगी
मौत कितनी भी संगदिल ...

रंग और नस्ल नाम और दौलत ज़िन्दगी कितने फ़र्क़ मानती है
मौत हदबन्दियों से ऊँची है सारी दुनिया को एक जानती है
जिन उसूलों पे मर रहे हैं हम
उन उसूलों की कद्र्दाँ होगी
मौत कितनी भी संगदिल ...

मौत से और कुछ मिले न मिले ज़िन्दगी से तो जान छूटेगी
मुस्कुराहट नसीब हो के न हो आँसुओँ की लड़ी तो टूटेगी
हम न होंगे तो ग़म किसे होगा
ख़त्म हर ग़म की दास्ताँ होगी
मौत कितनी भी संगदिल ...

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