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ma.nzar sameT laaye hai.n jo tere gaa.Nv ke - - Ghulam Ali

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मंज़र समेट लाये हैं जो तेरे गाँव के
नींदें उड़ा रहे हैं वो झोंके हवाओं के

तेरी गली से चाँद भी ज़्यादा हँसी नहीं
कहते सुने गये गैं मुसाफ़िर ख़लाओं के

पल भर को तेरी याद में धड़का था दिल मेरा
अब दूर तक भँवर से पड़े हैं सदाओं के

दाद-ए-सफ़र मिली है किसे राह-ए-शौक़ में
हमने मिटा दिये हैं निशाँ अपने पाँवों के

ज़िंदा थे जिनसे सर्द हवाओं में हम 'क़तील'
अब ज़हर-आब हो गये साये हवाओं के

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