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majabuur\-e\-muhabbat ne phir ham ko pukaaraa hai

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मजबूर-ए-मुहब्बत ने फिर हमको पुकारा है
मिलने की तमन्ना है, जीने का सहारा है
दिन बहार के, ऐतबार के, जीत हार के, आये हैं -२
मजबूर-ए-मुहब्बत ने फिर हमको पुकारा है

दिल को बड़ी दुशवारियाँ हैं
कैसी तेरी दिलदारियाँ हैं
उलफ़त है ये, कोइ खेल नहीं
इस में बड़ी लाचारियाँ है
मजबूर-ए-मुहब्बत ...

दिल ही वो क्या जिसे प्यार न हो
हुस्न से जो लाचार न हो
ऐसी लगन किस काम की है
जिस में किसी की हार न हो
मजबूर-ए-मुहब्बत ...

Comments/Credits:

			 % Transliterator:Srinivas Ganti
% Date:12 April,2001
% Comments:LATAnjali
		     
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