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mai.nne shaayad tumhe.n, pahale bhii kahii.n dekhaa hai

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मैं ने शायद तुम्हें पहले भी कहीं देखा है

अजनबी सी हो मगर गैर नहीं लगती हो
वहम से भी जो हो नाज़ुक वो यकीं लगती हो
हाय ये फूल सा चेहरा ये घनेरी ज़ुल्फ़ें
मेरे शेरों से भी तुम मुझको हंसीं लगती हो

देखकर तुमको किसी रात की याद आती है
एक ख़ामोश मुलाक़ात की याद आती है
जहाँ में हुस्न की ठंडक का असर जगता है
आंच देती हुई बरसात की याद आती है

जिसकी पलकें मेरी आँखों पे झुकी रहती हैं
तुम वही मेरे ख़यालों की परी हो की नहीं
कहीं पहले की तरह फिर तो न खो जाओगी
जो हमेशा के लिये हो वो खुशी हो की नहीं

Comments/Credits:

			 % Credits: C. S. Sudarshana Bhat (cesaa129@utacnvx.uta.edu)
%          Venkatasubramanian K Gopalakrishnan (gopala@cs.wisc.edu)
%          Preetham Gopalaswamy (preetham@src.umd.edu)
		     
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