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mai.n ek sadii se baiThii huu.N

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मैं एक सदी से बैठी हूँ
इस राह से कोई गुज़रा नहीं
कुछ चाँद के रथ तो गुज़रे थे
पर चाँद से कोई उतरा नहीं
मैं एक सदी से बैठी हूँ ...

दिन रात के दोनो पहिये भी
कुछ धूल उड़ा कर बीत गये
मैं मन आँगन में बैठी रही
चौखट से कोई गुज़रा नहीं
मैं एक सदी से बैठी हूँ ...

आकाश बड़ा बूढ़ा बाबा
सब को कुछ बाँट के जाता है
आँखों को निचोड़ा मैं ने बहुत
पर कोई आँसू उतरा नहीं
मैं एक सदी से बैठी हूँ ...

Comments/Credits:

			 % Transliterator: K Vijay Kumar
		     
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