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mahafil so_ii aisaa ko_ii hogaa kahaa.N

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महफ़िल सोई ऐसा कोई -२
होगा कहाँ जो समझे ज़ुबाँ मेरी आँखों की
महफ़िल सोई ऐसा कोई
होगा कहाँ जो समझे ज़ुबाँ मेरी आँखों की
महफ़िल सोई

( रात गाती हुई गुनगुनाती हुई
बीत जायेगी यूँ मुस्कुराती हुई ) -२
सुबह का समाँ पूछेगा कहाँ
गये मेहमाँ जो कल थे यहाँ
महफ़िल सोई ऐसा कोई
होगा कहाँ जो समझे ज़ुबाँ मेरी आँखों की
महफ़िल सोई

( आज थम के गज़र दे रहा है ख़बर
कौन जाने इधर आये ना सहर ) -२
किसको पता ज़िंदगी है क्या
टूट ही गया साज़ ही तो था

महफ़िल सोई ऐसा कोई
होगा कहाँ जो समझे ज़ुबाँ मेरी आँखों की
महफ़िल सोई

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