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lagataa nahii.n hai jii meraa uja.De dayaar me.n

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लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में
किस की बनी है आलम-ए-ना-पायेदार में

बुलबुल को बाग़बां से न सैय्याद से गिला
क़िस्मत में क़ैद थी लिखी फ़सल-ए-बहार में

उम्र-ए-दराज़ माँग के लाये थे चार दिन
दो आरज़ू में कट गये, दो इंतज़ार में

कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़दार में

है कितन बदनसीब ज़फ़र दफ़्न के लिये
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में

Comments/Credits:

			 % Credits: Sarvesh Asthana (sasthana@cup.hp.com)
%          Ravi Rai (rrai@plains.nodak.edu)
% Transliterator: Shripad Lale (lale@cent.gud.siemens.co.at)
% Editor: Anurag Shankar (anurag@astro.indiana.edu)
		     
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