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kyaa khoyaa kyaa paayaa jag me.n

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क्या खोया क्या पाया जग में

मिलते और बिछड़ते मग में

मुझे किसी से नहीं शिक़ायत

यद्यपि छला गया पग पग में

एक दृष्टि बीती पर डालें

यादों की पोटली टटोलें

अपने ही मन से कुछ बोलें

प्रथ्वी लाखों वर्ष पुरानी

जीवन एक अनन्त कहानी

पर तन की अपनी सीमाएँ

यद्यपि सौ शरदों की वाणी

इतना काफ़ी है अंतिम दस्तक

पर ख़ुद दरवाज़ा खोलें

अपने ही मन से कुछ बोलें

जन्म मरण का अविरत फेरा

जीवन बंजारों का डेरा

आज यहां कल कहाँ कूच है

कौन जानता किधर सवेरा

अँधियारा आकाश असीमित

प्राणों के पंखों को तौलें

अपने ही मन से कुछ बोलें

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