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kyaa dekhate ho, suurat tumhaarii

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आशा: क्या देखते हो?
रफ़ी: सूरत तुम्हारी
आशा: क्या चाहते हो?
रफ़ी: चाहत तुम्हारी
आशा: न हम जो कह दें?
रफ़ी: कह न सकोगी
आशा: लगती नहीं ठीक नीयत तुम्हारी
क्या देखते हो ...

रफ़ी: रोज़-रोज़ देखूँ तुझे नई-नई लगे मुझे
तेरे अँगों में अम्रित की धारा -२
आशा: मिलने लगे ढंग तेरे, देखे कोई रँग तेरे
तेरी बातों का अन्दाज़ प्यारा -२
रफ़ी: शरारत से चहरा चमकने लगा क्यों
आशा: ये रँग लाई है संगत तुम्हारी
क्या देखते हो ...

आशा: सोचो ज़रा जान-ए-जिगर बीतेगी क्या तुमपे अगर
हमको जो कोई चुरा ले
तुमसे हमको जो कोई चुरा ले
रफ़ी: किसीने जो तुम्हें छीना, नामुम्किन है उसका जीना
कैसे नज़र कोई डाले
तुमपे कैसे नज़र कोई डाले
आशा: प्यार पे अपने इतना भरोसा
रफ़ी: इतना मोहब्बत में फ़ित्रत हमारी

आशा: क्या देखते हो ...

Comments/Credits:

			 % Transliterator: Rajiv Shridhar  
% Date: 08/10/1995
% Credits:  ss 
% Editor: Rajiv Shridhar 
		     
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