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Kvaab ho tum yaa koii haqiikat, kaun ho tum batalaao

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ख़्वाब हो तुम या कोई हक़ीक़त
कौन हो तुम बतलाओ
देर से कितनी दूर खड़ी हो
और करीब आ जाओ

सुबह पे जिस तरह, शाम का हो गुमाँ - (२)
ज़ुल्फ़ों में एक चेहरा, कुछ ज़ाहिर कुछ निहा

धड़कनों ने सुनी, एक सदा पाओं की - (२)
और दिल पे लहराई, आँचल की छाओं सी

मिल ही जाती हो तुम, मुझको हर मोड़ पे - (२)
चल देती हो कितने, अफ़साने छोड़ के

फिर पुकारो मुझे, फिर मेरा नाम लो - (२)
गिरता हूँ फिर अपनी, बाहों में थाम लो

Comments/Credits:

			 % Credits: C. S. Sudarshana Bhat (cesaa129@utacnvx.uta.edu)
%          Preetham Gopalaswamy (preetham@src.umd.edu)
		     
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