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ko_ii samajhaaye kyaa ra.ng hai mayakhaane kaa - - Ghulam Ali

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जाम जब पीता हूँ मुँह से कहता हूँ बिस्मिलाह
कौन कहता है कि रिंदों को ख़ुदा याद नहीं

कोई समझाये क्या रंग है मयखाने का
आँख साक़ी की उठे नाम हो पैमाने का

गर्मी-ए-शम्मा का अफ़साना सुनाने वालो
रक्स देखा नहीं तुमने अभी परवाने का

किसको मालूम थी पहले से खिरद की क़ीमत
आलम-ए-होश पे एहसान है दीवाने का

चश्म-ए-साक़ी मुझे हर गाम पे याद आती है
रास्ता भूल न जाऊँ कहीं मयखाने का

अब तो हर शाम गुज़रती है उसी कूँचे में
ये नतीजा हुआ नासेह तेरे समझाने का

मंज़िल-ए-ग़म से गुज़रना तो है आसाँ 'इक़बाल'
इश्क़ है नाम ख़ुद अपने से गुज़र जाने का

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