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ko_ii sachche Kaab dikhaa kar ... ye rishtaa kyaa kahalaataa hai

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कोई सच्चे ख़ाब दिखा कर
आँखों में समा जाता है
ये रिश्ता
ये रिश्ता क्या कहलाता है -४

जब सूरज थकने लगता है
और धूप सिमटने लगती है
( कोई अन्जानी सी चीज़ मेरी
साँसों से लिपटने लगती है ) -२
मैं दिल के क़रीब आ जाती हूँ
दिल मेरे क़रीब आ जाता है
ये रिश्ता क्या कहलाता है -२

इस गुमसुम झील के पानी में
कोई मोती आ कर गिरता है
इक दायरा बनने लगता है
और बढ़ के भँवर बन जाता है
ये रिश्ता क्या कहलाता है -४

तसवीर बना के रहती हूँ
मैं टूटी हुई आवाज़ों पर
( इक चेहरा ढूँढती रहती हूँ
दीवारों कभी दरवाज़ों पर ) -२
मैं अपने पास नहीं रहती
और दूर से कोई बुलाता है
ये रिश्ता क्या कहलाता है -४

आ आ आ आ आ आ आ
उं उं उं उं ऊं ऊं ऊं

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